
FB 1890 - just wrote something last night on my blog :
खड़ा हूँ मैं यहाँ एक विश्वास पर ,
पूर्वजों की देन और ललकार पर ,
क्या समझते हो मुझे, ओ नक़ाब धारी सूरतों, तुम ;
डर जाऊँगा मैं तुम्हारी शक्ल ओ दीदार पर
पीस डालो मुझे गंद मिट्टी के ढेरों पर ,
खड़ा हो जाऊँगा मैं फिर उसी स्थान पर ,
कहते हो मुझसे तुम्हारा अंत कर देंगे हम
जिस शरीर को निरंत किया, पहले उस ईश्वर से झूँझकर दिखाओ , पर
बाँध लिया था मैंने तुम्हें अपने आग़ोष में ,
साँसे एक कर दी थीं मैंने अपने स्नेह प्यार में ,
जो कुछ तुमने दिया किया फ़रमाया था
आज पता चला भ्रम था वो, हमें बहलाने में
व्यक्त कर दिया तुमने जो अपने व्यवहार से
झूट से लदी प्रतिमा थी अलग संसार से
व्यर्थ होगा अब हमें समझाने में
शूल अब निकल चुका है धनुष बाण् से
~ amitabh bachchan
FB 1890 - just wrote something last night on my blog : खड़ा हूँ मैं यहाँ एक विश्वास पर , पूर्वजों की देन और ललकार पर , क्या समझते हो मुझे, ओ नक़ाब धारी सूरतों, तुम ; डर जाऊँगा मैं तुम्हारी शक्ल ओ दीदार पर पीस डालो मुझे गंद मिट्टी के ढेरों पर , खड़ा हो जाऊँगा मैं फिर उसी स्थान पर , कहते हो मुझसे तुम्हारा अंत कर देंगे हम जिस शरीर को निरंत किया, पहले उस ईश्वर से झूँझकर दिखाओ , पर बाँध लिया था मैंने तुम्हें अपने आग़ोष में , साँसे एक कर दी थीं मैंने अपने स्नेह प्यार में , जो कुछ तुमने दिया किया फ़रमाया था आज पता चला भ्रम था वो, हमें बहलाने में व्यक्त कर दिया तुमने जो अपने व्यवहार से झूट से लदी प्रतिमा थी अलग संसार से व्यर्थ होगा अब हमें समझाने में शूल अब निकल चुका है धनुष बाण् से ~ amitabh bachchan